Saturday, October 9, 2010

शीन काफ़ निज़ाम

जोधपुर (राजस्थान) में 26 नवम्बर 1947 को जन्मे शीन काफ़ निज़ाम एक दर्द आशना दिल के मालिक हैं ! बहुत कम उम्र में एहसास की विशाल दौलत से मालामाल हुए कवि के रूप में उर्दू जगत में उन्हें एक उच्च और सम्मानित स्थान हासिल है ! 'लम्हों की सलीब', साया कोई लंबा न था', 'दश्त में दरिया', 'सायों के साये में' देवनागरी में और 'नाद', 'बयाजें खो गई हैं' (कविता), 'लफ्ज़ दर लफ्ज़' (आलोचनात्मक लेखों का संग्रह) उर्दू में शाया हुए ! उर्दू के बहुचर्चित काव्य संकलनों 'शीराज़ा' और 'मेयार' में शामिल किए गए ! मंटो की कहानियों पर विशेष अध्ययन उर्दू में शाया हुआ ! राजस्थान उर्दू अकादमी के सर्वोच्च सम्मान 'महमूद शीरानी पुरस्कार' से नवाजे गए ! यहां पढ़ें उनकी एक खूबसूरत ग़ज़ल -


मौजे-हवा से फूलों के चेहरे उतर गए
गुल हो गए चिराग़ घरौंदे बिखर गए

पेड़ों को छोड़कर जो उड़े उनका जिक्र क्या
पाले हुए भी ग़ैरों की छत पर उतर गए

यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
हम तो समझ रहे थे सभी ज़ख्म भर गए

हम जा रहे हैं टूटते रिश्तों को जोड़ने
दीवारो-दर की फ़िक्र में कुछ लोग घर गए

चलते हुओं को राह में क्या याद आ गया
किसकी तलब में क़ाफ़िले वाले ठहर गए

जो हो सके तो अबके भी सागर को लौट आ
साहिल के सीप स्वाति की बूंदों से भर गए

इक एक से ये पूछते फिरते हैं अब 'निज़ाम'
वो ख्वाब क्या हुए, वो मनाज़िर किधर गए

____________________________________

मौजे-हवा : हवा की लहर, रुत : ऋतु, मौसम; दीवारो-दर : दीवार और दरवाज़ा, तलब : इच्छा, साहिल : किनारा, तट; मनाज़िर : मंज़र का बहुवचन, दृश्य !

No comments:

Post a Comment