Thursday, October 28, 2010

सम्पत्ति की रक्षा के लिए बलप्रयोग जायज़

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही एक मुकदमे पर फैसला सुनाते हुए ‘आत्मरक्षा के अधिकार’ की एक नई और महत्वपूर्ण व्याख्या की । अब तक कानून यह कहता था कि किसी व्यक्ति से यदि आपकी जान को खतरा उत्पन्न होता है, तो आपके द्वारा किया गया बल प्रयोग जायज़ है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा है कि अपनी चल-अचल सम्पत्ति की रक्षा के लिए किया गया बल प्रयोग भी जायज़ है। बलपूर्वक आत्मरक्षा का अधिकार केवल अपने आपको बचाने तक सीमित नहीं है, अगर कोई हमलावर आपकी सम्पत्ति चुरा रहा है या जबरन उस पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है, तो उसे बचाने के लिए आप बल प्रयोग कर सकते हैं।
इस ऐतिहासिक फैसले की विस्तृत व्याख्या से पहले संबंधित केस की पृष्ठभूमि जान लेना बेहतर होगा। सिकंदर सिंह ने एक सम्पत्ति पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से अपने कुछ साथियों के साथ हमला किया । जवाब में सम्पत्ति के मालिक ने अपनी सम्पत्ति की रक्षा के लिए हमलावर सिकंदर और उसके साथियों पर गोलियां चलाईं, जिससे इन लोगों को चोटें आई। इन चोटों के आधार पर सिकंदर सिंह तथा उसके साथियों ने सम्पत्ति मालिक के खिलाफ हिंसा एवं मारपीट का मुकदमा दर्ज करा दिया। निचली अदालत में शुरू हुआ मुकदमा अंतत: सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, जहां सिकंदर की याचिका को ठुकरा दिया गया और उसे कोई राहत नहीं दी गई। सिकंदर की याचिका को ठुकराते हुए अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजी रक्षा के अधिकार के सिद्धांत के पीछे बुनियादी तथ्य यह है कि जब किसी व्यक्ति को या उसकी सम्पत्ति को खतरा हो और राज्य के अमले से तुरंत मदद नहीं पहुंच सके या उपलब्ध न हो, तो उस व्यक्ति को अपनी और अपनी सम्पत्ति की रक्षा करने का अधिकार है और इसके लिए वह उचित बल प्रयोग भी कर सकता है। न्यायाधीश डी. के. जैन और आर.एम. लोढ़ा की खण्डपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए यह नहीं बताया कि ‘उचित बलप्रयोग’ क्या है।
सवाल यह उठता है कि ‘उचित बलप्रयोग’ की परिभाषा क्या है? अपनी सम्पत्ति की रक्षा के लिए व्यक्ति कितना बल प्रयोग कर सकता है। किन्तु यह सहज ही समझा जा सकता है कि यह सब परिस्थितियों पर निर्भर है। कहीं केवल लाठी ही आक्रमणकारियों के खिलाफ कारगर हो सकती है और कहीं इसके लिए गोली ही पर्याप्त होगी। संभवत: इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने यह परिभाषा निर्धारित नहीं की कि बल प्रयोग कैसा और कितना हो। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जाहिर है कि आत्मरक्षा में व्यक्ति परिस्थिति के अनुसार कम या ज्यादा बल का प्रयोग कर सकता है अर्थात् व्यक्ति को आत्मरक्षा में एक थप्पड़ से लेकर खून बहाने तक का अधिकार है, लेकिन यदि वह अपने इस अधिकार का दुरुपयोग करता है, तो यह दंडनीय होगा अर्थात् जहां केवल हवा में गोली चलाने से बात बन सकती थी, वहां यदि सीने पर गोली चलाई गई है, तो इसे ‘आत्मरक्षा का अधिकार’ नहीं मानकर व्यक्ति को अपराधी माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार अपनी या अपनी सम्पत्ति की रक्षा के लिए किया गया बल प्रयोग हमलावर से उत्पन्न खतरे के समानुपाती होना चाहिए, उससे बहुत अधिक नहीं। निर्णय में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि आत्मरक्षा में बल प्रयोग की न्यायोचित प्रतीत होने वाली सीमा निर्धारित करना कठिन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, ‘‘जिस व्यक्ति को खतरा है, वह ठीक खतरे के वक्त अपने आपको या अपनी सम्पत्ति को बचाने के लिए किन साधनों और कितने बल का प्रयोग करता है, इसे सुनहरी तराजू पर नहीं तोला जा सकता। न यह संभव है और न ही विवेक इसकी अनुमति देता है कि यह जानने के लिए कि खतरे में फंसे हुए व्यक्ति ने आत्मरक्षा में उचित साधनों और जरूरत के मुताबिक बल का प्रयोग किया अथवा नहीं, अमूर्त पैमाने निर्धारित किए जाएं।’’
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सम्पत्ति पर कब्जे की नीयत से सिकंदर सिंह और उसके साथियों ने ही हमला किया था, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय में कहा, ‘‘आत्मरक्षा के अधिकार में आक्रामक होना अथवा हमलावर होना शामिल नहीं है... याचिकाकर्ता यह स्थापित करने में विफल रहे हैं कि वे निजी रक्षा के अधिकार का प्रयोग कर रहे थे।’’
वर्तमान में देश में जो परिस्थितियां हैं और क़ानून व्यवस्था की जो स्थिति है, उसके मद्दे-नज़र यह सहज ही समझा जा सकता है कि ‘आत्मरक्षा के अधिकार’ की सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई इस नई व्याख्या से जनता को काफी राहत मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने आत्मरक्षा के निजी अधिकार का विस्तार चल-अचल सम्पत्ति की रक्षा तक आज की जरूरत के हिसाब से किया है, लेकिन इस फैसले का स्वागत करते हुए भी यह जरूरत साफ महसूस होती है कि संभ्रान्त लोगों को हथियार लाइसेंस देने में और नरमी बरतने की जरूरत है, क्योंकि इस महत्वपूर्ण फैसले का भले लोगों को पूरा लाभ तभी मिल सकता है, जब उन्हें शस्त्र लाइसेंस सुगमता से मिलें। सरकार को यह कदम शीघ्र उठाना चाहिए कि वह कम से कम शरीफ नागरिकों के लिए हथियारों का लाइसेंस उपलब्ध कराने की प्रक्रिया आसान करे, तभी आत्मरक्षा के अधिकार का सही अर्थ और लाभ सामने आ सकेगा ।

1 comment:

  1. वाकई मुश्किल है व्याख्या।

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