Sunday, October 10, 2010

नासिर काज़मी

अविभाजित भारत के अम्बाला में 1925 के दिसंबर माह के आठवें रोज पैदा हुए नासिर ने बीस-इक्कीस बरस की उम्र में ही शायरी शुरू कर दी थी ! उनकी शुरूआती ग़ज़लों में से एक 'होती है तेरे नाम से वहशत कभी - कभी' बहुत मकबूल हुई ! इसका एक शे'र 'ऐ दोस्त हमने तर्के-मुहब्बत के बावुजूद / महसूस की है तेरी ज़रुरत कभी - कभी' थोड़े ही दिनों में उर्दू दुनिया में शोहरत पा गया और हर जुबान पर चढ़ गया ! उनके दोस्तों का कहना है, "इस शे'र की शोहरत के कारण नासिर इस शे'र से चिढ़ गया था !" यह दरअसल उनके मिजाज़ का आईना है ! नासिर के यहां छोटी-छोटी तस्वीरें जोड़ने से अहद की वीरानी की तस्वीर मुकम्मल होती है और एक ऐसा शायर सामने आता है, जिसमें अकेले घर, बंद दरवाज़े और राहगीरों से खाली राहगुज़ारें दिखाई देती हैं ! शायर इस बस्ती में अकेला मारा -मारा फिर रहा है ! वह कभी फ़ितरत से पनाह हासिल करता है और कभी अपनी तन्हाई और उदासी को अपना हमसफ़र बनाता है ! नासिर ने उदासी को 'आज के इंसान का भजन' कहा था, इसलिए कि उदासी ज़रपरस्त समाज की हिर्स से अलहदा होने की कोशिश थी ! कहना चाहिए कि नासिर ने अपने उदास अहद को उदास होने के आदाब सिखाए ! खुद बेहतरीन अफसानानिगार और नासिर के दोस्त इंतज़ार हुसैन ने लिखा है, "इस आशिक़ का मसलक था उदासी और रतजगा ! ... आधी रात के बाद नासिर 'मीर' को बिलउमूम भूल जाता था ! अब उसे मीराबाई याद आती थी ! कभी सूरदास का कोई भजन, कभी कबीर का कोई दोहा ! नासिर के शे'र के लहज़ा को जानने - समझने की खातिर 'मीर' के साथ इन लोगों को भी याद रखा जाए तो अच्छा है !" आइए, उनके कलाम से हम भी सीखें उदास होने और रतजगे के आदाब -


दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तिरी याद थी अब याद आया

आज मुश्किल था संभलना ऐ दोस्त
तू मुसीबत में अज़ब याद आया

दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तेरा वाद-ए-शब याद आया

तेरा भूला हुआ पैमाने - वफ़ा
मर रहेंगे अगर अब याद आया

फिर कई लोग नज़र से गुज़रे
फिर कोई शहरे-तरब याद आया

हाले - दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुखसत हुआ तब याद आया

बैठ कर साय - ए - गुल में 'नासिर'
हम बहुत रोये वो जब याद आया

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वहशत : भय, तर्के-मुहब्बत : प्रेम का परित्याग, अहद : युग, मुकम्मल : पूर्ण, फ़ितरत : स्वभाव, प्रकृति; पनाह : रक्षा, त्राण, बचाव; हमसफ़र : यात्रा के साथी, ज़रपरस्त : संपत्ति के लोलुप, भोग और भौतिकतावादी; हिर्स : लोभ, लिप्सा, लालच; अलहदा : अलग, आदाब : संस्कार, आचार; मसलक : रास्ता, मार्ग; 'मीर' : शायर मीर तक़ी 'मीर', बिलउमूम : अक्सर, प्रायः, बहुधा; लहज़ा : ढंग, तरीका, दस्तूर : परम्परा, तर्क : परित्याग, तोड़ना;वाद-ए-शब : रात का वादा, पैमाने-वफ़ा : प्रेम या निष्ठा का पैमाना, शहरे-तरब : प्रसन्न नगर, हाले-दिल : हृदय की स्थिति, रुखसत : विदा, साय-ए-गुल : फूलों की छांव

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