Tuesday, October 5, 2010

'जोश' मलीहाबादी

'शायर-ए-इंक़लाब' कहलाने वाले 'जोश' 1894 में मलीहाबाद के एक जागीरदार घराने में पैदा हुए ! शबीर हसन खां से 'जोश' बनने का उनका सफ़र सिर्फ नौ बरस की उम्र में शुरू हो गया था ! 'अर्श-ओ-फर्श', 'शोला-ओ-शबनम', 'सुम्बल-ओ-सलासिल' आदि अनेक दीवान (काव्य संकलन) से उर्दू अदब को मालामाल (समृद्ध) करने वाले 'जोश' अपनी जीवनी 'यादों की बरात' की साफगोई के लिए पाकिस्तान में 'भारत का एजेंट' जैसे अनेक आक्षेपों का शिकार हुए ! लेफ्टिस्ट-तरक्कीपसंद (वामपंथी-प्रगतिशील) उर्दू शायरी के प्रवर्तकों में उनका इस्म-ए-शरीफ (नाम) और कलाम (सृजन) बहुत ऊंचा दर्ज़ा रखते हैं ! लुत्फ़ लीजिए उनकी एक ग़ज़ल का -




बला से कोई हाथ मलता रहे
तिरा हुस्न सांचे में ढलता रहे

हर इक दिल में चमके मोहब्बत का राग
ये सिक्का ज़माने में चलता रहे

वो हमदर्द क्या जिसकी हर बात में
शिकायत का पहलू निकलता रहे

बदल जाए खुद भी तो हैरत है क्या
जो हर रोज़ वादे बदलता रहे

ये तूल-ए-सफ़र, ये नशेब-ओ-फ़राज़
मुसाफिर कहां तक संभलता रहे

कोई जौहरी 'जोश' हो या न हो
सुखनवर जवाहर उगलता रहे

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हैरत : आश्चर्य, तूल-ए-सफ़र : लंबा सफ़र, नशेब-ओ-फ़राज़ : ऊंच-नीच, खाइयां और घाटियां, सुखनवर : कवि, जवाहर : जवाहरात

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