Sunday, October 10, 2010

अकबर इलाहाबादी

इलाहाबाद में 1846 के नवम्बर माह के सोलहवें रोज जन्मे सैयद हुसैन उर्दू शायरी में अकबर इलाहाबादी के नाम से मशहूर हैं ! उनका सृजन लोगों की जुबां पर इस क़दर चढ़ा हुआ है कि अकबर किसी परिचय के मोहताज़ नहीं ! यहां बस, दस्तूर निभाने के लिए दो-चार पंक्तियां ! अकबर साहब ने अपने कलाम का केंद्र तंज़ और मज़ाहिया मुद्दों को बनाया ! यही वजह है कि उनके अनेक अशआर वुद्धिमानों की महफ़िलों में बड़े अदब से पढ़े जाते हैं, तो वही शे'र रिक्शा और ट्रकवाले भी बड़े फख्र और शौक से अपने वाहनों के पीछे लिखवाते हैं ! उनकी महानता और जनप्रियता का सबसे बड़ा सबूत एक फिल्मी नग्मे में उनके इस्मे-शरीफ का उपयोग - 'मैं हूं अकबर इलाहाबादी ...' है ! यहां पहले रू-ब-रू होते हैं उनके मज़ाहिया कलाम से और उसके बाद तीखे तंज़ से ! लुत्फ़ उठाएं- 



एक .


ख़ुशी है सबको कि आपरेशन में ख़ूब नश्तर चल रहा है
किसी को इसकी ख़बर नहीं है मरीज़ का दम निकल रहा है

फ़ना उसी रंग पर है क़ायम, फ़लक वही चाल चल रहा है
शिकस्ता-ओ-मुन्तशिर है वह कल, जो आज सांचे में ढल रहा है

यह देखते ही जो कासये-सर, गुरूरे-ग़फ़लत से कल था ममलू
यही बदन नाज़ से पला था जो आज मिट्टी में गल रहा है

समझ हो जिसकी बलीग़ समझे, नज़र हो जिसकी वसीअ देखे
अभी तक ख़ाक भी उड़ेगी जहां यह क़ुल्जुम उबल रहा है

कहां का शर्क़ी कहां का ग़र्बी तमाम दुख-सुख है यह मसावी
यहां भी एक बामुराद ख़ुश है, वहां भी एक ग़म से जल रहा है

उरूजे-क़ौमी ज़वाले-क़ौमी, ख़ुदा की कुदरत के हैं करिश्मे
हमेशा रद्द-ओ-बदल के अन्दर यह अम्र पोलिटिकल रहा है

मज़ा है स्पीच का डिनर में, ख़बर यह छपती है पायनियर में
फ़लक की गर्दिश के साथ ही साथ काम यारों का चल रहा है


दो.


बिठाई जाएंगी परदे में बीवियां कब तक
बने रहोगे तुम इस मुल्क में मियां कब तक

हरम-सरा की हिफ़ाज़त को तेग़ ही न रही
तो काम देंगी यह चिलमन की तितलियां कब तक

मियां से बीवी हैं, परदा है उनको फ़र्ज़ मगर
मियां का इल्म ही उट्ठा तो फिर मियां कब तक

तबीयतों का नमू है हवा-ए-मग़रिब में
यह ग़ैरतें, यह हरारत, यह गर्मियां कब तक

अवाम बांध ले दोहर को थर्ड-वो-इंटर में
सिकण्ड-ओ-फ़र्स्ट की हों बन्द खिड़कियां कब तक

जो मुंह दिखाई की रस्मों पे है मुसिर इब्लीस
छुपेंगी हज़रते हव्वा की बेटियां कब तक

जनाबे हज़रते 'अकबर' हैं हामि-ए-पर्दा
मगर वह कब तक और उनकी रुबाइयां कब तक

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हरम-सरा : भवन का वह भाग जहां स्त्रियां रहती हैं, तेग़ : तलवार, नमू : उठान, मग़रिब : पश्चिम, ग़ैरत : हयादारी, हरारत : गर्मी, अवाम : जनता, मुसिर : जिद करना, हामि-ए-पर्दा : पर्दे का समर्थन करने वाला !

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