Tuesday, October 5, 2010

'फ़िराक' गोरखपुरी

गोरखपुर में 1896 के अगस्त की 28वीं तारीख को जन्मे रघुपति सहाय को उर्दू अदब में 'फ़िराक' गोरखपुरी के रूप में एक आला मुकाम (उच्च स्थान) हासिल है ! 'शायर-ए-जमाल' (सौन्दर्य का कवि) कहलाने वाले 'फ़िराक' ने 1918 से शायरी शुरू की ! उनके अनेक दीवान शाया (काव्य संकलन प्रकाशित) हुए, जिनमें तकरीबन बीस हज़ार अशआर शामिल हैं ! बहुत ज्यादा अशआर में ग़ज़ल कहने के लिए नामवर (विख्यात) 'फ़िराक' ने तकरीबन सात सौ गज़लें, एक हज़ार रुबाइयां और अस्सी से ज्यादा नज्में कही हैं ! अपने दीवान 'गुल-ए-नग्मा' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया और बाद में ज्ञानपीठ सम्मान से भी ! लुत्फ़ उठाइए 'फ़िराक' की एक रसभीनी ग़ज़ल का -



शाम-ए-गम कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
बेखुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो

नकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशां, दास्तान-ए-शाम-ए-गम
सुब्ह होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो

ये सुकूत-ए-यास, ये दिल की रगों का टूटना 
खामशी में कुछ शिकस्त-ए-साज़ की बातें करो

हर रग-ए-दिल वज्द में आती रहे, दुखती रहे
यूं ही उसके जा-ओ-बेजा नाज़ की बातें करो

कुछ कफस की तीलियों से छन रहा है नूर सा
कुछ फ़ज़ा, कुछ हसरत-ए-परवाज़ की बातें करो

जिसकी फुरकत ने पलट दी इश्क की काया 'फ़िराक'
आज उसी ईसा-नफस दमसाज़ की बातें करो

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शाम-ए-गम : शोकपूर्ण संध्या, निगाह-ए-नाज़ : भंगिमायुक्त दृष्टि, बेखुदी : आत्म-विस्मृति, नकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशां : उलझे हुए सुगन्धित केश, दास्तान-ए-शाम-ए-गम : शोकपूर्ण संध्या (यहाँ अर्थ रात से है) की कहानी,सुकूत-ए-यास : नैराश्य की चुप्पी, खामशी : खामोशी, शिकस्त-ए-साज़ : साज़ का टूटना, रग-ए-दिल : दिल की रग, वज्द : उन्माद, जा-ओ-बेजा : उचित और अनुचित, नाज़ : भंगिमा, अदा, कफस : पिंजरा, नूर : प्रकाश,हसरत-ए-परवाज़ : उड़ने की अभिलाषा, फुरकत : बिछोह, ईसा-नफस : पवित्र हृदय, दमसाज़ : मित्र

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