सैयद अब्दुस्सलाम बुखारी उर्दू अदब के संसार में ऐन सलाम के नाम से जाने जाते हैं ! 1929 में जन्मे ऐन सलाम की नज्में आज़ाद हैं और गज़लें पुरसोच !
मुलाहिजा फरमाएं एक नज़्म -
बरसती रात का जादू
बरसती रात की तन्हाइयों में
फ़ज़ा में बिजलियां यूं तिलमिलाईं
मुझे महसूस कुछ ऐसा हुआ, तू
मेरी आग़ोश में सिमटी हुई है !
उनकी शैली पर फ़ारसीयत की छाप है, पर शऊर में आधुनिक मनोविज्ञान है ! वे बलोची और पश्तो लोकगीतों को उर्दू में लाने के लिए बहुप्रशंसित हुए हैं ! उनके दो संकलन 'बलोची लोकगीत' और 'पश्तो लोकगीत' शाया हुए ! 'चकीदा' और 'चांद आईने में' उनकी शायरी के संग्रह हैं ! आइए, अब रू-ब-रू हों उनकी पुरसोच ग़ज़ल के एक नमूने से -
मैं इधर चुप हूं आप उधर चुप हैं
दोनों मजरूह हैं, मगर चुप हैं
किस क़यामत का सामना है कि आज
अहले-फ़रियाद इस क़दर चुप हैं
जो तेरी खोज में थे नग्मा-तराज़
जाने क्यों तुझको ढूंढ कर चुप हैं
अपनी वुसअत में खो गए होंगे
तेरे आशुफ्ता-सर अगर चुप हैं
आमदे-इंक़िलाब - क्या कहिए
चुप हैं अफ़लाक, बामो-दर चुप हैं
कुछ तो कहिए कि बात क्या है सलाम
आप क्यों आज इस क़दर चुप हैं
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अहले-फ़रियाद : दुहाई देने वाले, नग्मा-तराज़ : गाने वाले, वुसअत : विस्तार, आशुफ्ता-सर : प्रेमी, आमदे-इंक़िलाब : इंक़िलाब (क्रान्ति) का आना, अफ़लाक : संसार, बामो-दर : खिड़कियां और दरवाज़े
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