Saturday, October 9, 2010

'निदा' फ़ाज़ली

1938 में दिल्ली में जन्मे मुक़तदा हसन का बचपन ग्वालियर में बीता ! देश के बंटवारे के बाद परिवार-विभाजन का ज़ख्म खाया और 'निदा' फ़ाज़ली बन गए ! साठोत्तरी पीढ़ी के चर्चित कवि और सफल फ़िल्मी गीतकार हैं ! उनके 'लफ़्ज़ों का पुल', 'मोरनाच', 'खोया हुआ सा कुछ' आदि काव्य संकलन शाया (प्रकाशित) हुए ! 'निदा' की शायरी एक ऐसे कोलाज की तरह है, जिसके कई रूप हैं ! उनके अनेक अशआर और दोहे वर्तमान में ही बोलचाल के मुहावरे बन चुके हैं ! यह एक ऐसी विशेषता है, जो इने-गिने शोअरा का हिस्सा है !



नई-नई आंखें हों, तो हर मंज़र अच्छा लगता है
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है

मिलने-जुलने वालों में तो सारे अपने जैसे हैं
जिससे अब तक मिले नहीं, वो अक्सर अच्छा लगता है

मेरे आंगन में आए या तेरे सर पर चोट लगे
सन्नाटों में बोलने वाला पत्थर अच्छा लगता है

चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने सांचे हैं
जो मूरत में ढल जाए, वो पैकर अच्छा लगता है

हमने भी सोकर देखा है नए-पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है

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मंज़र : दृश्य, पैकर : आकृति

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