Saturday, October 9, 2010

'मुनीर' नियाज़ी

होशियारपुर में 1928 में जन्मे मोहम्मद मुनीर खां उर्दू काव्य जगत में 'मुनीर' नियाज़ी के नाम से विख्यात हैं ! इश्क-ओ-हुस्न (प्रेम और सौंदर्य) 'मुनीर' की शायरी के केन्द्रीय विषय अवश्य हैं, लेकिन इन पर भी नज़र उनकी अपनी है और इसके साथ-साथ वे अपने इर्द-गिर्द से बेखबर भी नहीं हैं ! ग़ज़ल के रिवायती अल्फाज़ और प्रचलित तरकीबों के बल पर ही उन्होंने अपना रचना - संसार खड़ा किया है, लेकिन ज़मीन बिलकुल नई और खुद अपनी तलाशी है ! आइए, बिताएं इस अनूठी साहित्यिक ज़मीन पर कुछ नायाब लम्हे !



बेचैन बहुत फिरना, घबराए हुए रहना
इक आग सी जज़्बों की दहकाए हुए रहना

छलकाए हुए फिरना खुशबू लबे-लाली की
इक बाग़ सा साथ अपने महकाए हुए रहना

उस हुस्न का शेवा है जब इश्क नज़र आए
परदे में चले जाना, शरमाए हुए रहना

इक शाम सी कर रखना, काजल के करिश्मे से
इक चांद सा आंखों में चमकाए हुए रखना

आदत ही बना ली है तुमने तो 'मुनीर' अपनी
जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना

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जज्बा : भावना, लबे-लाली : लाल होंठ, शेवा : ढंग

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