Thursday, October 7, 2010

जमीलुद्दीन 'आली'

लोहारू के नवाब अमीरुद्दीन के पुत्र जमीलुद्दीन का जन्म 1926 के जनवरी माह की पहली तारीख को दिल्ली में हुआ ! इब्ने इंशा की तरह 'आली' भी कबीर, मीर और नजीर अकबराबादी की परम्परा के शायर हैं ! 1947 में पाकिस्तानी बन जाने का दर्द झेलते 'आली' अपने दोहों में 'दिल्ली के यमुना तट पर बैठ कर भारतीय सभ्यता के दीपक जलाते' नज़र आते हैं !
पाकिस्तान में जो हों 'आली' दिल्ली में थे नवाब - उनके एक दोहे की यह पंक्ति उनके जीवन का निचोड़ है ! 'गज़लें दोहे गीत' और 'लाहासिल' उनके प्रसिद्ध काव्य संकलन हैं !


'आली' जी अब आप चलो तुम अपने बोझ उठाए
साथ भी दे तो आखिर हमारे कोई कहां तक जाए

जिस सूरज की आस लगी है, शायद वो भी आए
तुम ये कहो, खुद तुमने अब तक कितने दीये जलाए

अपना काम है सिर्फ मोहब्बत, बाक़ी उसका काम
जब चाहे वो रूठे हमसे, जब चाहे मन जाए

क्या-क्या रोग लगे हैं दिल को, क्या-क्या उनके भेद
हम सबको समझाने वाले, कौन हमें समझाए

एक इसी उम्मीद पे हैं सब दुश्मन दोस्त क़बूल
क्या जाने इस सादा-रवी में कौन कहां मिल जाए

दुनिया वाले सब सच्चे पर जीना है उसको भी
एक गरीब अकेला पापी किस किस से शर्माए

इतना भी मजबूर न करना वर्ना हम कह देंगे
ओ 'आली' पे हंसने वाले तू 'आली' बन जाए

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सादा-रवी 
: धीमी चाल

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